Tuesday 6 December 2016

चुनौतीपूर्ण होगा राष्ट्रगान के फ़ैसले को अमल में लाना

Picture Credit: IANS

देश में इस वक़्त राष्ट्रगान को लेकर बहस छिड़ी हुई है. बहस की वजह बना है सुप्रीम कोर्ट का आदेश. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के रहने वाले श्याम नारायण चौकसे की जनहित याचिका पर एक अहम फ़ैसला सुनाते हुए आदेश दिया कि सिनेमाघरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान अनिवार्य रूप से बजाया जाय. साथ ही कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघर में राष्ट्रगान बजते समय सभी लोगों को खड़ा भी होना होगा.

पूरे देश में इस आदेश की समीक्षा हो रही है. कुछ लोग इसकी आलोचना भी कर रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 51 (A) के अनुसार, भारत के राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है.

अभी तक लोग सिनेमाघर में मनोरंजन करने के लिए जाते थे लेकिन अब उन्हे राष्ट्रगान भी गाना पड़ेगा. यह देखना अपने आप में बेहद दिलचस्प होगा कि सरकार किस तरह रोमांटिक फ़िल्म देखने के लिए आने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं को राष्ट्रगान गाने के लिए मनाती है. 

महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बहुत पहले से राष्ट्रगान बजाया जाता है. सिनेमाघरों में 60 और 70 के दशक में राष्ट्रगान बजाया जाता था लेकिन लोग सावधान मुद्रा में खड़े नही रहते थे. बीच-बीच में इधर-उधर आते जाते रहते थे, लिहाजा कुछ वक़्त बाद प्रथा समाप्त हो गई.

सुप्रीम कोर्ट ने विजोई इमानुएल व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ केरल व अन्य में वर्ष 1986 में कहा था,“राष्ट्रीय गान बजने के दौरान उसे गाना जरूरी नही है. अगर कोई उसके सम्मान में खड़ा हो जाता है, तो पर्याप्त है.


कोर्ट ने सिनेमाघर में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने का फ़ैसला सुना दिया लेकिन इसे अमल में कराने में सरकार को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. कहीं ऐसा न हो कि कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त खुद सिनेमाघर में पहुंचकर क़ानून अपने हाथ में लेकर इस फ़ैसले को लागु न करवाने लगे. सरकार को बहुत ही धैर्य से काम लेना होगा.

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