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नोटबंदी के इस फ़ैसले का अमीरों पर कुछ ख़ास असर नही पड़ा है। वे अपने पैसे को
शेयर और रियल स्टेट में इन्वेस्ट कर रखे हैं। इस फ़ैसले का सबसे ज़्यादा असर देश
के आम आदमी पर पड़ा है। देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जिनका कोई बैंक एकाउंट नही है।
ये लोग अब भी लेन-देन कैश के माध्यम से ही करते हैं। ये बैंक में जाकर पैसा जमा करने
से बेहतर मानते हैं घर में पैसा रखना।
देश का ग़रीब तबका, जिसे दिनभर काम करने के बाद शाम को जो मेहताना (मजदूरी)
मिलती है, उससे वह खाने-पीने का जुगाड़ करता है। उसके पास इतना समय नही होता है कि
वह बैंक में जाकर पैसे जमा कर सके। अगर वह कुछ रूपये बचाकर बैंक में जमा करने चला भी
गया तो फिर उसे शाम को भोजन के लिए सोचना पड़ सकता है।
बेशक आप दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहर में चाय पीकर पेटीएम करते हों, लेकिन अगर
आप बनारस के किसी गांव में जाकर पेटीएम करना चाहेंगे, तो यह बहुत हद तक
मुमकिन नही है। गांव में मोबाईल फोन तो पहुंच गये है लेकिन उसे चार्ज करने के लिए
(इलेक्ट्रिक) बिजली की समस्या आज भी बरकरार है । उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में
कुछ गांव तो ऐसे हैं, जहां के लोगों के पास मोबाईल फ़ोन तो है लेकिन उसे चार्ज करने के लिए मीलों सफ़र करना
पड़ता है, ऐसे में कैशलेस इंडिया का सपना एक कोरी कल्पना ही साबित होगी ।
बैंकों की पहुंच अभी भी गांव में कम ही है । वैसे तो गांव में पहले से ही कुछ हद तक कैशलेस व्यवस्था चल रही है । गांव में आज भी कमोडिटी एक्सचेंज (वस्तु-विनिमय) की
व्यवस्था कायम है । गांववाले आपस में एक-दूसरे से अनाज का लेन-देन करते हैं ।
बावजूद इसके, सब्जी तथा अन्य सामान खरीदने के लिए लोगों को कैश का उपयोग करना पड़ता
है।
कुछ लोग नोटबंदी के फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं और कुछ लोग तारीफ़। फिलहाल
मौजूदा वक़्त में लोगों को इससे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।