“मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे
पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं।”
मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां पाकिस्तान से भारत आए हिन्दू शरणार्थियों पर सटीक
बैठती है। मार्च 2013 में करीब़ 125 परिवार अपना घर छोड़कर पाकिस्तान के सिन्ध
प्रान्त हैदराबाद से भारत आए। आजकल ये लोग दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास मजनूं का
टीला मोहल्ले में सड़क के किनारे झुग्गियों में रहने पर मजबुर है। पाकिस्तान में
होने वाले अत्याचार से तंग होकर ये लोग वीज़ा के ज़रिए भारत आये। आज भारत में भी इनकी
हालात पाकिस्तान से ज़ुदा नही है। इनके पास न ही कोई रोजगार है और न ही कोई खेत,
जिससे की ये अपना गुजर-बसर कर सके। ये रोटी, कपड़ा और मकान जैसे बुनियादी सुविधाओं
से महरूम है। इन्हें भारत की झुग्गियों में रहना क़बूल है लेकिन पाकिस्तान की
हवेली में रहना नही। करीब तीन साल से ये भारतीय नागरिकत्ता मिलने की आंस लगाए बैठे
है, लेकिन कोई सुंध लेने वाला नही है।
28 नवंबर को एनडीटीवीएमआई से जल्दी फ्री हो गया था तो मैंने जर्नल के लिए किसी
रिप्यूजी कैम्प में जाने का निश्चय किया। मुझे एक परिचित ने बताया कि कश्मीरी गेट
के पास मजनूं का टीला मोहल्ले में एक तिब्बत रिफ्यूजी कैम्प है। मैं मजनूं का टीला
के तिब्बत रिफ्यूजी कैम्प गया, फिर वही गुरूद्वारे के पास सड़क किनारे रह रहे
पाकिस्तान शरणार्थी कैम्प। पुरे कैम्प मे घुमने के बाद इनके दर्द को सुनकर घर गया
तो, मुझे रातभर नींद नही आई।
फोटोः सड़क किनारे मोबाईल कवर बेचते दयालू (पाकिस्तानी शरणार्थी)
इन लोगों के कमाई का कोई ख़ास जरिया नही है। कुछ लोग फुटपाथ पर दुकान लगाकर
मोबाइल कवर बेचते है, तो कुछ लोग सब्जी। एम.सी.डी. वाले इन लोगों को दुकान लगाने
से मना करते हैं। इनके पास भारत की नागरिकत्ता न होने कारण कहीं नौकरी भी नही कर
पा रहे है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिलने के बाद राशन कार्ड बनाने के
लिए टीम आयी थी, उसे सर्वे करके गये तकरीबन 4 महीने बीत गये, लेकिन अभी तक राशन
कार्ड नही बन पाया।
कैम्प के प्रधान दयालू मोबाइल कवर बेचते है। उन्होने बताया कि “एक दिन में कभी तीन, कभी चार और कभी पाँच कवर बिक पाते है, ज्यादा से ज्यादा
100 रूपये एक दिन में कमा पाता हुँ। इतने से गुजारा नही हो पा रहा है।”
ये अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल
बनाना चाहते है। बच्चों को शिक्षा देने के लिए भारत आये, मगर भारतीय नागरिकत्ता न
होने के कारण बच्चों को स्कूल में भी समस्या हो रही है। दयालू ने बताया कि- “बच्चे के स्कूल से नोटिस आया है कि अगर आपके बच्चे का वीजा 15 तारीख तक नही
बढ़ा तो, बच्चे को स्कूल से निकाल देगे।” इस तरह की नोटिस स्कूल से
सिर्फ दयालू के बच्चे को ही नहीं बल्कि बस्ती के सभी बच्चों के यहां आई है। बच्चों
को शिक्षा से वंचित करना कतई सही नही है।
पता नहीं सरकार इन्हें रहने के
लिए घर मुहैया करा पायेगी या नही, लेकिन कम-से-कम इन्हे नागरिकत्ता तो दे,
जिससे ये अपने बच्चों को शिक्षा दिला पाये। लोकसभा चुनाव 2014 के समय नरेंद्र मोदी
ने पकिस्तान ओर बांग्लादेश के शरणार्थियों को भारत की नागरिकत्ता देने की बात कही
थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद शायद वह शरणार्थियों की बात भूल गये। बेशक बीजेपी हिन्दुत्व
का झण्डा बुलन्द करती हो लेकिन जिंदगी की जद्दोजहद में लगे ये शरणार्थी उनकी नज़र
से ओझल है।